मै रम गया तेरी काशी में

मै रम गया तेरी काशी में,
मैं रम गया तेरी काशी में,
मन साधु हुआ,
मन साधु हुआ,
बन गया सन्यासी मै,
मैं रम गया तेरी काशी में।।

जो आनंद है तेरे घाटों में,
माथा झुकता है,
काशी कपाटों में,
वैरागी हुआ,
वैरागी हुआ,
जो प्रीत लगी अविनाशी में,
मैं रम गया तेरी काशी में।।

मन साधु हुआ,
मन साधु हुआ,
बन गया सन्यासी मै,
मैं रम गया तेरी काशी में।।

छोड़े महल ये रेशमी धागों के,
नींदे मीठी हैं, गंगा के घाटो में,
मल्हारी हुआ,
मल्हारी हुआ,
मैं रम गया चौरासी में।।

मै रम गया तेरी काशी में
मन साधु हुआ,
मन साधु हुआ,
बन गया सन्यासी मै।।

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