बैठ सामने तेरे बाबा तुझको रोज़ मनाता हूँ

बैठ सामने तेरे बाबा तुझको रोज़ मनाता हूँ
गौर करोगे कभी तो बाबा सोच के अर्जी लगाता हु
गौर करोगे कभी तो बाबा सोच के अर्जी लगाता हु
बैठ सामने तेरे बाबा तुझको रोज़ मनाता हूँ।।

माना चाहने माना चाहने वाले बहुत है तभी तो तुम इतराते हो
मुझे भूल कर खुश जब तुम क्यों सपनों में आते हो
मुझसा पागल नही मिलेगा तुझको ये बतलाता हु
बैठ सामने तेरे बाबा तुझको रोज़ मनाता हूँ।।

दीवानों की इस महफ़िल में तुम मस्ती में खोये हो
सुना था प्रेमी के अनसु पे तुम भी बाबा रोये हो
क्या कमी थी मेरे प्रेम में समज नही मैं पाता हु
बैठ सामने तेरे बाबा तुझको रोज़ मनाता हूँ।।

एक ही अर्जी राखी करती तेरी सेवा मिल जाए
मुरजाई सी इस बगियाँ में फूल ख़ुशी के खिल जाए
कैसे चलेगा माधव ऐसे गम कब न साथ निभाता हु
बैठ सामने तेरे बाबा तुझको रोज़ मनाता हूँ।।

https://www.youtube.com/watch?v=rrkQgp0pJj8

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