
श्री राम जपो रघुवंश मणि, मिट जाए तीनो ताप।
काल काँपे, जम थरथरे, ऐसा है नाम प्रताप ।।
भज राम सिया मूरख जिया,
भज राम सिया मूरख जिया,
अइसन सुन्दर देहिया बार बार ना मिली,
बिना भजन के देहिया भाव से पार ना चली।।
भज राम सिया मूरख जिया,
अइसन सुन्दर देहिया बार बार ना मिली,
बिना भजन के देहिया भाव से पार ना चली।।
भज राम सिया मूरख जिया,
अइसन सुन्दर देहिया बार बार ना मिली,
बिना भजन के बेडा पार ना लगी ।।
जिंदगी की आस नइखे कईले भजनीया,
माया के बाजार में एक दिन छूट जाई दुनिया।।
छूट जाई दुनिया छूट जाई दुनिया।।
राम नाम का दिया, बारे अपने हिया,
कबहुँ जीवन पथ में अंधियार ना मिली ,
बिना भजन के देहिया भाव से पार ना चली।।
भज राम सिया मूरख जिया,
अइसन सुन्दर देहिया बार बार ना मिली,
बिना भजन के देहिया भाव से पार ना चली।।