दुख कौन हरे बिन तेरे

दुख कौन हरे बिन तेरे,
रघुबीर कृपालू मेरे
जब से संसार में आया,
ममता में रहा भुलाया,
मद काम क्रोध सब घेरे
रघुबर कृपालू मेरे
दुख कौन हरे बिन तेरे
रघुबर कृपालू मेरे।।

हरि भजन न मो को भाया,
नहिं प्रेम चरन रघुराया,
अंत: में छाए अंधेरे ।
रघुबीर कृपालू मेरे ।
दुख कौन हरे बिन तेरे
रघुबर कृपालू मेरे।।

तन धोया मन नहिं धोया,
यह जीवन व्यर्थ बिगोया,
छूटे न भ्रमण के फेरे,
रघुबीर कृपालू मेरे
दुख कौन हरे बिन तेरे
रघुबीर कृपालू मेरे ।।

प्रभु अंत समय आया जब,
तेरि याद प्रभू आई तब,
‘ब्रह्मेश्वर’ शरन है तेरे ।
रघुबीर कृपालू मेरे ।
दुख कौन हरे बिन तेरे
रघुबर कृपालू मेरे।।

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