दुनिया से मैं हारा हूँ तकदीर का मारा हूँ

दुनिया से जो माँगा मिलती रुसवाई है
तेरे दर पे सुनते है होती सुनवाई है
दुःख दूर करो मेरे मैं भी दुखियारा हूँ
जैसा भी हूँ अपना लो मैं बालक तुम्हारा हूँ।।

दुनिया से मैं हारा हु तकदीर का मारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो मैं बालक तुम्हारा हूँ ।।

पापो की गठरी ले फिरता मारा मारा,
नही मिलती है मंजिल नही मिलता किनारा,
नहीं कोई ठिकाना है मैं तो बेसहारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो मैं बालक तुम्हारा हूँ ।।

दुनिया से जो माँगा है मिलती रुसवाई है,
तेरे दर पे सुनते है होती सुनवाई है,
दुःख दूर करो मेरे मैं भी दुखाराया हु,
जैसा भी हूँ अपना लो मैं बालक तुम्हारा हूँ ।।

कोशिश करते करते नही नाव चला पाया,
आखिर में थक करके तेरे दवार पे हु आया,
इस श्याम को तारो गे तुझे दिल से पुकारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो मैं……….

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