
सतगुरु अपनी कुटिया में आ जाइये
ये भी घर है आपका हमे अपनाइये।।
गुरु नाम का, मैं नशा चाहती हूं
विनय कर रहा हूं,दया चाहती हूं।।
प्रभू नाम का जाम, मुझे भी पिला दो,
जो देखा न कभी भी वो, जलवा दिखावों,
लगी है तलब जो उसे तुम बुझा दो,
लगी है तलब जो उसे तुम बुझा दो,
शरण में तुम्हारी शरण में तुम्हारी
जगह चाहती हूं विनय कर रही हूं दया !!
मिट जाए हस्ति,जा जाए मस्ती,
बन्दों को अपने,जो तुमने बख़्शी,
रहमत पे तेरी टिकी मेरी कश्ती,
वही तो निगाहें वही तो निगाहें
करम चाहती हूं विनय कर रही हूं।।
गुरु नाम का, मैं नशा चाहती हूं
विनय कर रहा हूं,दया चाहती हूं।।
चरणों का “शिव” को दीवाना बनावो,
अपनी शमां का परवाना बनालो
अपनी शमां का परवाना बनालो
मै अपने आप को भूलना चाहती हूं
विनय कर रही हूं दया चाहती हूं।।
स्वर – साध्वी ममता दीदी जी।