
जहाँ जहाँ बैठे जिस मोड़ पे बैठे
खाटू में ऐसा लगता तेरी गोद में बैठे
जहाँ जहाँ बैठे हो हो हो ………….
जिसे मैं कह सकूँ अपना वो तो खाटू में रहता है
याद जो आ जाये उसकी आँख से आंसू बेहटा है
जन्मो का नाता हम जोड़ के बैठे
खाटू में ऐसा लगता तेरी गोद में बैठे
जहाँ जहाँ बैठे हो हो हो ………….
तुम्हारे मंदिर को बाबा कभी मंदिर नहीं समझा
अपने बाबा का घर समझा कभी भी दर नहीं समझा
अपना ही घर है ये सोच के बैठे
खाटू में ऐसा लगता तेरी गोद में बैठे
जहाँ जहाँ बैठे हो हो हो ………….
तेरी खाटू की गलियों में ही ऐसा प्यार बरसता है
हो रहा जो इसमें पागल उसका जीवन संवरता है
लाखों ही पागल देखो मौज में बैठे
खाटू में ऐसा लगता तेरी गोद में बैठे
जहाँ जहाँ बैठे हो हो हो ………….
जब भी हम वापस आते हैं ये गलियों छोड़ के तेरी
ऐसा लगता है बनवारी उतर आये गोद से तेरी
घर क्यों नहीं खाटू में मन मसोस के बैठे
खाटू में ऐसा लगता तेरी गोद में बैठे
जहाँ जहाँ बैठे हो हो हो ………….