
कान्हा तुम्हे मैं समझ ना पाई छलियाँ हो या हरजाई
या हो मेरे चित चोर के माखन चोर
कान्हा तुम्हे मैं समझ ना पाई छलियाँ हो या हरजाई।।
बन के ग्वाला गईया चराए यमुना तट पे मुरली बजाए
मटकी फोड़े माखन खाए सारी गुजारियो
को सताए चले नही किसी का जोर ये माखन चोर
कान्हा तुम्हे मैं समझ ना पाई छलियाँ हो या हरजाई ।।
वैसे तो तेरा रंग है काला काला हो कर भी मतवाला
अपने आप को रोक न पाऊ
मैं तो खिची ही चली आऊ कान्हा तेरी और
कान्हा तुम्हे मैं समझ ना पाई छलियाँ हो या हरजाई।।
बस मेरा है एक ही सपना तुम को बना लू मैं अब अपना
तेरी निगाहो का ये असर है तेरी मेरी प्रीत अमर है
जैसे हो चाँद चकोर ये माखन चोर
कान्हा तुम्हे मैं समझ ना पाई छलियाँ हो या हरजाई ।।