
मेरे मन में कान्हा
ह्रदय की धुन में कान्हा
और जीवन में कान्हा क्या कहें
भक्त सा मेरा मन हो गया है अर्पण
अब तुम ही हो जीवन क्या कहें
कान्हा तुमसे लगन जो लगी
ज़माना मैं भुला बैठा
तुम्हारे प्रेम की धारा मैं जीवन ये लगा बैठा ।।
तेरे दीदार को मोहन मेरी अँखियाँ तरसती ही गई
चले आओ मेरे कान्हा उमर मेरी गुज़र ही रही
मेरे केशव अब आ जाओ ह्रदय मेरा पुकारे तुम्हे
अरज़ इतनी तो सुनलो मेरी ये तन मन सब तेरे नाम किये ।।
तेरी बंसी की धुन सुनके गोपियाँ दौड़ी आती हैं
तुझे माखन खिलाने को कितना स्नेह जताती हैं
तेरी लीला है इतनी मोहक कि ब्रज सारा यूँ खो सा गया
तेरे चरणों कि रज्ज पाकर कि मथुरा भी यूँ झूम उठा ।।
सांवरे तेरे दर्शन कि ये अँखियाँ तो दीवानी हैं
ये तेरा प्रेम हैं सांसें ये मेरी ज़िंदगानी हैं
मेरे जीवन कि इस नैया का अब तो तू किनारा है
तेरे संसार में मोहन मेरा इक तू सहारा है
ओ कान्हा …….. ।।
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