कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल

कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

जमुना जल की रेती गारा उसकी भीत बना देना,
लता पता से उस कुटिया को ऊपर से छवा देना,
दरवाजे पर मोहन लिख दो चंदन जड़ी कीबाढ़,
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

उस कुटिया के दरवाजे पर तुलसी और केला होवे,
लता पता पर फूल खिले हैं कदम पेड़ छाया होवे,
उन फूलों का हार बना कर मोहन तुम्हें पहनाए,
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

भक्ति भाव से भरा हुआ उस कुटिया में मंदिर होवे,
राधा कृष्ण बैठे होमें सत्संग और कीर्तन होवे,
बाल कृष्ण की होवे आरती नित उठ दर्शन पावे,
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

अमावस पूर्णिमा उस कुटिया में संतों की सेवा होवे,
कथा कीर्तन कुटिया में रामायण के पाठ होवे,
कुटिया में जब बने रसोई गो ग्रास निकले,
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

माखन मिश्री भोग लगे और मालपुआ रबड़ी होवे,
भर भर दोना सबको बांटो जब इच्छा पूरी होवे,
संतो और भगवान कृपा की जूठन हमें मिल जाए,
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

आषाढ़ मास में बारिश होवे उस कुटिया में आ जाना,
सावन में है रक्षाबंधन राखी तुम बंधवा जाना,
भादो में तेरा आया जन्मदिन आकर तिलक करा जाना,
कार्तिक की है शरद पूर्णिमा कुटिया में रास रचाए,
कोठरिया मेरी ऐसी बनईयो नंद के लाल।।

Leave a Comment