
साया बन के चलूँगी संग आपके,
ससुर संग ना रहूं ना रहूं बाप के ।।
अयोध्या के महल हमे भाते नहीं,
ये सोने के सिंहासन सुहाते नहीं,
मैं तो पत्थर पे बैठूं संग आपके,
ससुर संग ना रहूं न रहूं बाप के ।।
महलों के खाने हमें भाते नहीं,
पूड़ी और हलुआ सुहाते नहीं,
कंदमूल खाके रहूं संग आपके,
ससुर संग ना रहूं न रहूं बाप के ।।
ये सोने और चांदी हमे भाते नहीं,
ये तकिए और गद्दे सुहाते नहीं,
मैं तो पत्तों पे सोई संग आपके,
ससुर संग ना रहूं न रहूं बाप के।।