यह कल कल छल छल बेहती क्या कहती गंगा धारा

यह कल कल छल छल बेहती,क्या कहती गंगा धारा,युग युग से बेहता आता,यह पुण्य प्रवाह हमारा,यह पुण्य प्रवाह हमारा।। हम इसके लघुतम जल कण,बनते मिटते है कण कण,अपना अस्तित्व मिटा कर,तन मन धन करते अर्पण,बढते जाने का शुभ प्रण,प्राणों से हमको प्यारा,यह पुण्य प्रवाह हमारा,यह पुण्य प्रवाह हमारा।। यह कल कल छल छल बेहती,क्या कहती … Read more