तू महलो में रहने वाली मैं जोगी जटा धरी हूँ

तू महलो में रहने वाली मैं जोगी जटा धरी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता अटल अटारी हूँ।।

महलो में रहने वाली मैं जोगी जटा धरी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता पर्वत अटारी हूँ।।

पर्वत पे मैंने दिन गुजरा मेरा कोई घर बार नहीं
ब्याह कराकर मेरे संग सास ससुर का प्यार नहीं।।
तू सजे पे सोने वाली खटिया निवसहि निवासिनी
तू मांगे गई कहा से दूंगा शीशा और हार श्रृंगार नहीं।।

तुझे छपन भोग की अलख है मैं बिलकुल पेट पुजारी
तेरा मेरा मेल मिले न रहता पर्वत अटारी हूँ।।

तेरे प्यार होये मैं दीवानी शम्भू
तेरे प्यार में होई मैं दीवानी शम्भू ।।

ब्रह्मा से तू ब्याह करले ब्राह्मणी बन जायेगी
इंद्रा से तू ब्याह कराले इन्द्राणी बन जाएगी
विष्णु से तू ब्याह कराले पटरानी बन जायेगी
मेरे संग ब्याह से तेरी हानि बन जायेगी

तू रहा हिमाचल की लाडली मैं नशेमन श्याम बिहारी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता अटल अटारी हूँ।।

महलो में रहने वाली मैं जोगी जटा धरी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता अटल अटारी हूँ।।

तू सोनी मैं सुन्दरौ राहू पीटा घोट के भांग खाओ
जटा जूट भी काल कूट भी मस्ती में मस्त मलंगा हूँ
रोज लड़ेगी तेरी सौतन रखता शीश पे गंगा हूँ
देख देख तेरा दम निकलेगा लिटपा कोई भुजंगा हूँ
ना खाने को ना पीने नाम का शिव भंडारी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता अटल अटारी हूँ।।

महलो में रहने वाली मैं जोगी जटा धरी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता पर्वत अटारी हूँ।।

आस नहीं अगरास नहीं कैसे मन बहलाएगी
ठंडी और दुःख सोना होगा सर्दी में दर जायेगी
हाथ में पद जायेगे छले भांग का होता लाएगी।।

तेरी मन का कमल खिले ना अर्ध नरेश्वर नारी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता मस्त मलंगा हूँ।।

तू राजा की राज दुलारी मै सिर्फ लंगोटे आला सु
भांग रगड़ के पिया करू मैं कुंडी सोटे आला सु।।

महलो में रहने वाली मैं जोगी जटा धरी हूँ
तेरा मेरा मेल मिले न रहता पर्वत अटारी हूँ।।

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