बाबा तुझे कोई कहे डमरुधारी,
कोई त्रिपुरारी ऐ बाबा ।।
कोई तुमसा न कोई दानी,
नहीं दूजा कोई तुमसे सानी बाबा।।
ये जग कैलाश पे कर के बसेरा,
रामयी दियो धुनि ऐ बाबा।।
जब तूने पिया विष का प्याला,
तेरा रूप हुआ था निराला हे औघड़।।
देव सब बन गए तेरे ही पुजारी,
डमरू धरी ऐ बाबा।।
तेरे दर पे जो भी है आता,
मन वांछित फल है वो पता हे शम्भू,
तुम्ही जग में हो त्रिनेत्र धारी,
शंकर ऐ दानी हे बाबा ।।
बाबा तुझे कोई कहे डमरुधारी,
कोई त्रिपुरारी ऐ बाबा ।।