मनुष्य जन्म अनमोल रे मिटटी में न रोल रे

मनुष्य जन्म अनमोल रे मिटटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

तू सत्संग में जाया कर गीत प्रभु के गया कर
सांझ सवेरे बैठ के बन्दे हरी का ध्यान लगाया कर
महल गता कुछ मोल रे माटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

तू बुलबुला है पानी का मत कर जोर जवानी का
नेक कमाई करले रे भाई पता नहीं जिंदगानी का
मीठो सबसे बोल रे भाई माटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

मनुष्य जन्म अनमोल रे मिटटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

मतलब का संसार है उसका नहीं ऐतबार है
संभल संभल कर कदम रखो फूल नहीं अंगार है
मन की आँखे खोल रे भाई माटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

मनुष्य जन्म अनमोल रे माटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

श्री सतगुरु सरमोर है ज्ञान का भंडार है
जो कोई उनकी शरण में आवे करते बेडा पार है
सत्संग है अनमोल रे माटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

मनुष्य जन्म अनमोल रे मिटटी में न रोल रे
अब जो मिला है फिर न मिलेगा कभी नहीं कभी नहीं

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