रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना

रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना,
इस निर्धन दास को भी माता, तुम बुलवा कटरा नगर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना।।

ये कब से है इच्छा मेरी माँ तेरे दर्शन पाने की,
दो आज्ञा मुझे भी हे माता अपने दरबार में आने की,
मुझको भी मिले मौका मैया माँ दूर करो मेरा दुखड़ा,
तुम बुलवा के मुझे भी कटरा नगर तुम पीड़ा मेरी हर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना,
इस निर्धन दास को भी माता तुम बुलवा कटरा नगर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना।।

माँ तुम तो पहाड़ो वाली हो ऊँचे पर्वत पे भवन तेरा,
है राह कठिन डगर मुश्किल और उस पर से है सफर लम्बा,
मुझे जब भी माता बुलवाना मुझे देने सहारा तुम आना,
जब गिरने लागू मै हे मैया मेरी बाँह तू अम्बे धर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना,
इस निर्धन दास को भी माता तुम बुलवा कटरा नगर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना।।

जब जब भी नवरात्रे आते है श्रद्धालु कटरा जाते हैं,
तू जिनको भी बुलवाती है वो तेरे दर्शन पातें हैं,
इस निर्धन की ये विनती है तुमसे बस इतनी अर्जी है,
अब के नवरात्रों में मैया बुलवा मुझे अपने दर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना,
इस निर्धन दास को भी माता तुम बुलवा कटरा नगर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना।।

ये अनवर गुजराती रखता है कामना मन में दर्शन की,
कब संदेशा तुम भेजोगी कब लोगी खबर इस निर्धन की,
ये वो गुजराती शयर है जो सेवक माँ एक नम्बर है,
सेवा ये करेगा आजीवन तुम रख इसको चाकर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना,
इस निर्धन दास को भी माता तुम बुलवा कटरा नगर लेना,
रो रो कर विनती करता है माँ वैष्णो इसकी खबर लेना।।

Leave a Comment