श्याम सलोनी सूरत जबसे बस गई मन मंदिर में
बच न पाया मेरा तन मन डूबा प्रेम समंदर में
श्याम सलोनी सूरत जबसे बस गई मन मंदिर में
पहली डुबकी लगते ही
मन में भक्ति दीप जला
बिना तंत्र के जनम जनम की
कट गयी सारी अला बाला
जीवन में खुशहाली आयी
चरम शांति की अनभूति
हो गयी दिल के अंदर में
बच न पाया मेरा तन मन
डूबा प्रेम समंदर में
श्याम सलोनी सूरत जबसे
बस गई मन मंदिर में
श्याम सलोनी सूरत
दूजी डुबकी लगते ही
मिट गए सारे शिकवे गीले
बैर भाव और अहंकार के
ढल गए अपने आप गीले
नौ दो ग्यारह हुए निराशा
आशाओ पे फूल खिले
वो शक्ति मेरे तन में आयी
जो होती वीर धुरंदर में
बच न पाया मेरा तन मन
डूबा प्रेम समंदर में
श्याम सलोनी सूरत जबसे
बस गई मन मंदिर में
श्याम सलोनी सूरत
तीजी डुबकी लगते ही
दुःख मेरा सब दूर हुआ
सेठ सँवारे की भक्ति का
नशा मुझे भर पूर हुआ
कहे अनाड़ी मेरा जीवन
पत्थर से कोहेनूर हुआ
बिना तरसे पहले से भी
हो गया ज्यादा सुन्दर मैं
बच न पाया मेरा तन मन
डूबा प्रेम समंदर में
श्याम सलोनी सूरत जबसे
बस गई मन मंदिर में
श्याम सलोनी सूरत