
समदर्शी सतगुरु मिला दिया अविचल ज्ञान,
जहाँ देखो तहं एक ही दूजा नाहीं आन।।
समदर्शी सतगुरु किया मेटा भरम विकार,
जहाँ देखो तहं एक ही साहब का दीदार।।
तुझे है शौक मिलने का तो हरदम लौ लगाता जा,
तुझे है शौक़ मिलने का तो हर दम लौ लगाता जा।।
पकड़कर इश्क़ की झाड़ू सफा कर हर्ज-ए-दिल को ,
दुई की धूल को लेकर मुसल्ले पर उड़ाता जा
तुझे है शौक़ मिलने का तो हर दम लौ लगाता जा।।
तोड़कर फेंक दे तस्वीर किताबें डाल पानी में,
भूल से जो हुआ कुछ भी उसे दिल से भुलाता जा,
तुझे है शौक़ मिलने का तो हर दम लौ लगाता जा।।
न मर भूखा ना रख रोजा ना जा मस्ज़िद में कर सजदा,
वजू का तोड़कर कुंजा शराबे शौक पीता जा,
तुझे है शौक़ मिलने का तो हर दम लौ लगाता जा।।
न हो मुल्ला ना बन ब्राह्मण दुई का तर्क कर झगड़ा,
हुक्म है शाह कलन्दर का अनलहक तू सुनाता जा,
तुझे है शौक़ मिलने का तो हर दम लौ लगाता जा।।