चार दिनों की प्रीत जगत में चार दिनों के नाते है
पलकों के पर्दे पड़ते ही सब नाते मिट जाते हैं
जिनकी चिन्ता में तू जलता वे ही चिता जलाते हैं
जिन पर रक्त बहाये जल सम जल में वही बहाते हैं
पलकों के पर्दे पड़ते ही सब नाते मिट जाते हैं
घर के स्वामी के जाने पर घर की शुद्धि कराते है
पिंड दान कर प्रेत आत्मा से अपना पिंड छुडाते हैं
पलकों के पर्दे पड़ते ही सब नाते मिट जाते हैं
चौथे से चालीसवें दिन तक हर एक रस्म निभाते है
मृतक के लौट आने का कोई जोखिम नही उठाते है
पलकों के पर्दे पड़ते ही सब नाते मिट जाते हैं
आदमी के साथ उसका खत्म किस्सा हो गया
आग ठण्डी हो गई चर्चा भी ठण्डा हो गया
चलता फिरता था जो कल तक बनके वो तस्वीर आज
लग गया दीवार पर मजबूर कितना हो गया