सदगुरु मेहर कर

छोड़ के सारी दुनिया,
आया मैं तेरे दर पार,
सदगुरु मेहर कर,
सतगुरु मेहर कर

मुझमे भी बहुत अवगुण है
मैं गुनहगार हूँ,
उजड़ा पड़ा जो बरसों से,
मैं वो दयार हूँ,
हर पल लगता है डर
सतगुरु मेहर कर

तूफ़ानो मे है मेरी कश्ती,
मुझसे दूर किनारा,
मैं और पुकारू किसको
बिन तेरे कौन सहारा
भाव सागर से पार लगा दे तुझसे यही गुहार
सतगुरु मेहर कर

है चारो और अंधेरा,
कोई राह नही है,
अब और मुझे जीने की,
कोई चाह नही है
जिसस वक़्त रूकें मेरी साँसे,
तेरे चरनो मे हो सर
सतगुरु मेहर कर

सिंगर – कैलाश खैर

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