
प्रीत सी कुंगली डोर सी छिन ये,
पर्वत जन कठोर भी छिन ये,
हमारा पहाडू की नारी बेटी ब्वारी,
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी ।।
बिन्सिरी बीटी घणयूं मा लगीन,
स्येनी खानी सब हरचिन,
करम ही धरम काम ही पूजा,
युन्कई ही पसिन्यांन हरि भरिन
पुंगड़ी पटली हमारी बेटी ब्वारी,
बेटी ब्वारी, पहाड़ूं की,
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी।।
बरखा बतोन्युन बण मा रुझी छन,
पूंगड़ा मा घामन गाती सुखीं छन,
सौ सृंगार क्या होन्दु नई जाणी,
फिफ्ना फत्याँ छिन गालोडी तिड़ी छिन,
काम का बोझ की मारी, बेटी ब्वारी,
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी।।
खैरी का आंसूंन आंखी भोरी चा,
मन की स्याणी गाणी मोरी चा,
सरेल घर मा टक परदेश,
साँस चनि छिन आस लगी चा,
यूँ की महिमा न्यारी बेटी ब्वारी,
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी।।
दुःख बीमारी मा भी काम नि टाली,
घर बाण रुसडू याखुली समाली,
स्येंद नि पै कभी बिजदा नई देखी,
रत्ब्याणु सूरज यूनी बिजाळी
यूनसे बिधाता भी हारी बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाडू की बेटी ब्वारी,
प्रीत सी कुंगली डोर सी छिन ये
पर्वत जन कठोर भी छिन ये
हमारा पहाडू की नारी, बेटी ब्वारी,
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी
बेटी ब्वारी पहाड़ूं की बेटी ब्वारी।।