जगत चेतना हू अनादि अनंता
ना मन हूँ ना बुद्धि ना चित्त अहंकार,ना जिह्वा नयन नासिका कर्ण द्वार, ना चलता ना रुकता ना कहता ना सुनता,जगत चेतना हू अनादि अनंता ।। ना मैं प्राण हू ना ही हू पंच वायु,ना मुझमे घृणा ना कोई लगाव,ना लोभ मो ईर्ष्या ना अभिमान भाव,धन धर्म काम मोक्ष सब अप्रभाव, मैं धन राग गुणदोष … Read more