मुझे अपना जीवन बनाना न आया ,
रूठे हरी को मानना न आया।।
भटकी रही दुनियावालो के दर पर,
रही पाप धोती मैं सारी उमरिया।।
जगत के प्रभु को रिझाना आया ,
रूठे हरी को मानना न आया।।
मुझे अपना जीवन बनाना न आया,
रूठे हरी को मानना न आया।।
ये जग है सराय सभी को है जाना,
यहाँ रहने वालो से दिल न लगाना,
प्रभु चरणों में मन लगाना ना आया,
प्रभु चरणों में मन को लगाना ना आया ,
रूठे हरी को मानना न आया।।
मुझे अपना जीवन बनाना न आया,
रूठे हरी को मानना न आया।।
समझ न सकी मैं हरी की ये माया,
यही अपने दिल को हर एक में फसाया,
फसा दिल जगत से,
छुड़ाना न आया ,
रूठे हरी को मानना न आया।।
मुझे अपना जीवन बनाना न आया ,
रूठे हरी को मानना न आया।।