श्याम की मुरली जब राग छेड़ती है

राधे श्याम बंसी वाले मुरारी श्याम
है करिश्माई मुरलिया श्याम की
जिसमे बजे हर रागिनी राधा के नाम के
थिरके है जिसपे उंगलिया नन्द लाल की
पावन हो जाती है वो धुन गोकुल के धाम की

श्याम की मुरली जब राग छेड़ती है
सुध बुध सबकी एक पल में हारती है

झूमने लगता है हर एक सुनाने वाला
अपनी मधुर धुन से दीवाना करती है

श्याम की मुरली जब राग छेड़ती है
सुध बुध सबकी एक पल में हारती है

श्याम की मुरलिया के हम गुण गाये
क्या है खासियत इसकी तुम्हे हम बताये
होतो से लगाए कान्हा ने लगाए तब
बन गए गुलाब की काली तब
शर्मायी इठलाई सी हो जाती है
मधुर राग प्रेम के तब ये जाती है
अधरों से लिपट के नखरे ये करती है

श्याम की मुरली जब राग छेड़ती है
सुध बुध सबकी एक पल में हारती है

सातो सुरो में प्रेम सुर है निराला है
कृष्णा को बंसी का यही सुर है प्यारा
इस सुर ने जग को दीवाना बनाया
सब को परस्पर प्रेम है सिखाया
प्रेम सुर के बिन अधूरा है कान्हा
प्रेम को ही जग को आधार माना
प्रेम से ही बिगड़ी हर बात संवारती है

श्याम की मुरली जब राग छेड़ती है
सुध बुध सबकी एक पल में हारती है

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